एक युग का अंत: रतन टाटा के व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन की यादें
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एक युग का अंत: रतन टाटा के व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन की यादें

10 अक्टूबर, 2024 को, भारत ने अपने सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में से एक, रतन नवल टाटा को खो दिया, जिनका 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने न केवल एक युग का अंत किया, बल्कि उनके द्वारा छोड़ी गई विरासत ने भारतीय और वैश्विक व्यवसाय के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी। टाटा समूह को अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर ले जाने से लेकर उनके व्यक्तिगत जीवन की सादगी तक, रतन टाटा केवल एक व्यवसायी ही नहीं, बल्कि एक दूरदर्शी, परोपकारी और नैतिक नेता थे, जिनके मूल्य आधुनिक कॉर्पोरेट नेतृत्व के लिए मिसाल बने।

नेतृत्व की एक विरासत: टाटा समूह का कायाकल्प

1991 में जब रतन टाटा ने टाटा समूह की बागडोर संभाली, तब यह कंपनी एक स्थापित भारतीय समूह थी, लेकिन इसका अधिकांश कारोबार पारंपरिक उद्योगों में था। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह एक राष्ट्रीय इकाई से एक वैश्विक पावरहाउस बन गया। उनके कार्यकाल के दौरान, कंपनी का राजस्व $5.7 बिलियन (1991) से बढ़कर 2012 में लगभग $100 बिलियन तक पहुंच गया​। यह न केवल विस्तार बल्कि स्टील, ऑटोमोबाइल, दूरसंचार और प्रौद्योगिकी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विविधीकरण का प्रतीक था।

उनके सबसे उल्लेखनीय कार्यों में से एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों का अधिग्रहण था, जिसमें टेटली टी (2000), कोरस स्टील (2007) और जगुआर लैंड रोवर (2008) शामिल हैं। इन अधिग्रहणों ने टाटा समूह को वैश्विक मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी बना दिया। उदाहरण के लिए, टाटा मोटर्स द्वारा जगुआर लैंड रोवर का $2.3 बिलियन में अधिग्रहण एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि टाटा मोटर्स ने इस ब्रिटिश लग्जरी कार ब्रांड को कुछ ही वर्षों में लाभदायक बना दिया। आज, जगुआर लैंड रोवर टाटा मोटर्स की वैश्विक आय में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

सफलता के पीछे का व्यक्ति: सादगी और विनम्रता

अपार सफलता के बावजूद, रतन टाटा अपनी विनम्रता और सादगी के लिए जाने जाते थे। कई अन्य बड़े उद्योगपतियों के विपरीत, वे मुंबई के कोलाबा में एक साधारण घर में रहते थे। उन्होंने कभी शादी नहीं की और अक्सर कहा कि उनका समर्पण टाटा समूह और उनकी परोपकारी प्रतिबद्धताओं के प्रति था। उन्हें अपनी टाटा कार चलाने का बहुत शौक था, और वे अक्सर स्वयं गाड़ी चलाते हुए देखे जाते थे।

हालांकि रतन टाटा भारत के सबसे धनी परिवारों में से एक से ताल्लुक रखते थे, लेकिन उन्हें व्यक्तिगत संपत्ति से कोई लगाव नहीं था। टाटा संस में उनकी 65% से अधिक हिस्सेदारी टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से परोपकारी कार्यों के लिए समर्पित थी। यह उनकी दृढ़ आस्था को दर्शाता है कि संपत्ति का उपयोग दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए किया जाना चाहिए, जो टाटा परिवार के मूल्यों का एक प्रमुख हिस्सा था।

एक परोपकारी विशालकाय: व्यवसाय से परे प्रभाव

रतन टाटा की परोपकारी पहलें उनके व्यावसायिक सफलताओं जितनी ही महत्वपूर्ण थीं। टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से, उन्होंने भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और सामाजिक कल्याण के लिए अरबों रुपये का योगदान दिया। उनके परोपकारी कार्यों ने भारतीय विज्ञान संस्थान, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान और टाटा मेमोरियल अस्पताल जैसे संस्थानों को समर्थन दिया, जो अनुसंधान, शिक्षा और कैंसर उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

उनके परोपकारी दृष्टिकोण का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण टाटा नैनो प्रोजेक्ट है। 2008 में लॉन्च की गई, टाटा नैनो दुनिया की सबसे सस्ती कार के रूप में डिजाइन की गई थी, जिसकी कीमत लगभग $2,000 थी। इसका उद्देश्य लाखों भारतीयों के लिए कार खरीदना संभव बनाना था। हालांकि, यह परियोजना व्यावसायिक रूप से सफल नहीं रही, लेकिन यह परियोजना दर्शाती है कि रतन टाटा का दृष्टिकोण हमेशा जनता की सेवा करने पर केंद्रित था।

नैतिक नेतृत्व: एक आदर्श विरासत

अपने पूरे करियर के दौरान, रतन टाटा को उनके नैतिक नेतृत्व और व्यवसायिक सिद्धांतों के प्रति अडिग प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था। वे सही काम करने में विश्वास रखते थे, भले ही वह सबसे आसान या सबसे लाभकारी विकल्प न हो। इसका एक प्रसिद्ध उदाहरण 2008 में सिंगूर, पश्चिम बंगाल से टाटा नैनो प्लांट को हटाने का निर्णय था। किसानों के विरोध का सामना करने पर, उन्होंने स्थिति को हिंसक रूप से न बढ़ाने का फैसला लिया और संयंत्र को स्थानांतरित कर दिया, भले ही इसके आर्थिक परिणाम बड़े थे।

उनकी नैतिकता और नेतृत्व को व्यापक रूप से सराहा गया, और नेतृत्व पर उनके विचार सरल लेकिन गहरे थे। “मौके का इंतजार मत करो, खुद अपने मौके बनाओ,” उन्होंने एक बार कहा था, जो उनके व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन दोनों का परिचायक था​।

प्रभावशाली आंकड़े

रतन टाटा की व्यावसायिक विरासत को कुछ उल्लेखनीय आंकड़ों द्वारा भी परिभाषित किया जाता है:

  • राजस्व: उनके नेतृत्व में टाटा समूह का राजस्व $5.7 बिलियन (1991) से बढ़कर 2012 में लगभग $100 बिलियन हो गया।
  • अधिग्रहण: रतन टाटा ने टाटा समूह को कुछ भारत के सबसे बड़े अधिग्रहणों से गुजराया, जिसमें कोरस का $12 बिलियन और जगुआर लैंड रोवर का $2.3 बिलियन का अधिग्रहण शामिल है।
  • परोपकार: टाटा ट्रस्ट्स, जो टाटा संस की 65% से अधिक हिस्सेदारी को नियंत्रित करते हैं, ने विभिन्न कारणों से अरबों का दान किया है, जिससे टाटा समूह दुनिया के सबसे बड़े परोपकारी संगठनों में से एक बन गया है।
  • रोजगार: उनके नेतृत्व में टाटा समूह की कार्यबल संख्या वैश्विक स्तर पर 700,000 कर्मचारियों से अधिक हो गई।

अंतिम विदाई

रतन टाटा के निधन से भारतीय उद्योग में एक शून्य उत्पन्न हो गया है, और दुनिया भर से श्रद्धांजलि आ रही हैं। व्यापारिक नेता, राजनेता और आम नागरिक उनके समाज पर किए गए योगदानों के लिए आभार व्यक्त कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें “एक दूरदर्शी नेता” बताया, जिनका प्रभाव बोर्डरूम से कहीं अधिक विस्तृत था।

रतन टाटा के जीवन और विरासत पर भारत विचार कर रहा है, और यह स्पष्ट है कि उनका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक बना रहेगा। उनका नेतृत्व न केवल भारत के सबसे प्रतिष्ठित कंपनियों में से एक को नया स्वरूप देने वाला था, बल्कि इस बात का मानक भी स्थापित करता था कि व्यवसाय और नैतिकता कैसे सामंजस्यपूर्ण रूप से सह-अस्तित्व में हो सकते हैं।

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